किसी वस्तु को स्पर्श किए बिना उसके बारे में सूचना प्राप्त करना दूर संवेद कहलाता है। वर्तमान में दूर संवेद आर्थिक सामाजिक तथा सैन्य गतिविधियों आदि के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में उभरा है। प्रतीक देश उपग्रह आरक्षण पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है।
दूर संवेदी उपग्रह चित्र तथा अन्य दोनों माध्यम से सूचनाएं प्रदान कर रहे हैं।तकनीकी रूप से दूर संवेदन के अंतर्गत हम अगर लिखित संघटंको शामिल कर सकते हैं।
दूर संवेद के अंग
1- धरातलीय वस्तु
2- अभिलेखन युक्तियां
3- सूचना की प्राप्ति।
दूर संवेदन के अंतर्गत सूचनाओं के अधिग्रहण तथा सूचनाओं की प्राप्ति को हम अगर लिखित चरणों में बांट सकते हैं।
चित्र
दूर संवेदन के चरण को हम सरल रूप में अग्रलिखित तरीके से समझ सकते हैं।
1- ऊर्जा का स्रोत ( सूर्य अथवा कृत्रिम माध्यमों से)
2- ऊर्जा का संचरण ( श्रुत से पृथ्वी की सतह पर स्थित वस्तु तक)
3- ऊर्जा और वस्तु के मध्य अन्योन्य क्रिया
4- वस्तु द्वारा प्रवर्तित ऊर्जा वायुमंडल में परिवर्तन।
5- दूर संवेदक ( उपग्रह, वायुयान, गुब्बारा) द्वारा सूचना अभिग्रहण
7- सूचनाओं का विश्लेषण एवं व्याख्या।
8- सूचना उत्पाद के रूप में परिवर्तन।
9- सूचना उत्पादों का उपभोक्ता तक पहुंचाया जाना।
सूचना या विश्लेषण के पश्चात हम प्राप्त अन्य सूचनाओं को कंप्यूटर तथा अन्य इलेक्ट्रानिक उपकरणों की सहायता से प्रतिबिंब को परिवर्तित कर सकते हैं। स्टीरियोस्कोप, स्टीरियो मीटर आदि प्रमुख दर्शन उपकरण है जिसके माध्यम से हम प्रतिबिंब का और गहराई से विश्लेषण कर सकते हैं। फोटोग्राफी विधि के अंतर्गत हम सूचनाएं नेगेटिव पर प्राप्त करते हैं,वीडियो के रूप में सूचनाएं प्राप्त करते हैं। तथा विश्लेषण करने के दौरान हम उसे प्ले करके देख सकते हैं।
हमें सूचनाएं चलचित्र के रूप में मिलती हैं।
दूर संवेद के लाभ
1- विहंगम दृश्य की प्रस्तुति।
2- विराम क्रिया क्षमता।
3- स्पेक्ट्रमी सुग्राहिता में वृद्धि- सामान्यता आंखों से हम दृश्य स्पेक्ट्रम (0.4 – 0.7) की रेंज में आने वाली वस्तुओं को ही देख सकते हैं लेकिन दूर संवेदक ओं के माध्यम से हम ( 0.3 – 0.14) के परास में आने वाली वस्तुओं को देख सकते हैं।
4- स्थाई अभिलेख।
5- लागत प्रभावी विधि।
विद्युत चुंबकीय ऊर्जा – हरात्मक तथा ज्यावक्रीय तरंगों के रूप में प्रकाश के वेग से संचरण करने वाली ऊर्जा को विद्युत चुंबकीय ऊर्जा कहते हैं।
तरंग सिद्धांत के अनुसार किसी विद्युत चुंबकीय तरंग में एक ज्यावक्रीय चुंबकीय तरंग होता है ठीक उसी तरह यह तरंगे ना केवल आपस में बल्कि संचरण की दिशा में भी समकोण बनाती हैं।
तरंग के लक्षण
- तरंग वेग
- तरंग आवृत्ति
- तरंग दैर्ध्य
चित्र
सूक्ष्म तरंग बैंड – ( 0.1 – 100cm)
रडार के द्वारा सक्रिय फोटोग्राफी
पराबैगनी बैंड – ( .03 – 3 um ) से कम तरंग दैर्ध्य वितरण का पूर्ण रूप से अवशोषण।
X- बैंड – ( .03 – 30 nm)
Remote sensing के लिए कोई उपयोगी नहीं है,वायुमंडल के द्वारा इसका पूर्ण तह अवशोषण कर लिया जाता है।
Gamma band
इस बैंड का भी दूर संवेद में कोई महत्व नहीं है वायुमंडल के द्वारा इसका पहुंचा और शोषण कर लिया जाता है।
Visible band
हरा बैंड दृश्य बैंड का सबसे परिवर्तनशील बैंड है।
अवरक्त बैंड ( 0.7 – 3 )
फोटोग्राफ तथा फिल्म के लिए उपयोगी।
तापीय अव्यक्त बैंड
तापीय अव्यक्त बैंड / मध्य औरत फिल्मों के लिए और संवेदनशील लेकिन प्रतिबिंब के लिए।
ऊर्जा की पदार्थ से अन्योन्यक्रिया
इस तरह के अन्योन्यक्रियाओं के प्रकरणों में के 5 बड़े वर्ग हैं।
1- परागमन
2- प्रकीर्णन
3- अवशोषण
4- परावर्तन
5- उत्सर्जन
दूर संवेद की प्लेटफार्म ( remote sensing platform)
कैमरे की स्टैंड और रडार स्टैंड
वायुमंडलीय आधारित प्लेटफार्म – गुब्बारा, हेलीकॉप्टर, वायुयान।
अंतरिक्ष आधारित प्लेटफार्म – राकेट, अंतरिक्ष यान, कृत्रिम उपग्रह।
कृत्रिम उपग्रह के दो प्रकार
(i) भू- तुल्यकालिक उपग्रह – यह पश्चिम से पूर्व दिशा में लगभग 36000 किलोमीटर की ऊंचाई पर वृत्ताकार पथ पर पृथ्वी का एक चक्कर लगाता है।
इस तरह के उपग्रह दूर संचार तथा मौसम मॉनिटरिंग के लिए उपयोगी होता है।
1 किलोमीटर वर्गाकार क्षेत्र तक इसकी विभेदन क्षमता है।
INSAT – भू-तुल्यकालिक – दूरसंचार।
(ii) सूर्य तुल्यकालिक – 700 से 900 किलोमीटर की ऊंचाई पर उत्तर से दक्षिण की दिशा में पृथ्वी का चक्कर लगाता है। यह 81 डिग्री उत्तर से 81 डिग्री दक्षिण के क्षेत्र को कवर करता है।इस प्रकार के उपग्रह हर दिन 14 चक्कर लगाते हैं। इन की विभेदन क्षमता 182 मीटर से 1 मीटर तक है। इनका उपयोग जासूसी तथा रिमोट सेंसिंग में होता है।
दूर संवेदको के भेद- दूर संवेदको के अंतर्गत गुब्बारे, वायुयान, ड्रोन, उपग्रह आदि आते हैं। उन्हें स्पेक्ट्रमी बैंड के अनुसार भिन्न-भिन्न वर्गों में रखा जा सकता है।
1- पराबैंगनी दृश्य अवरक्त तथा लघु तरंग प्रदेशों के संवेदक
2- एकल व बहुस्पेक्ट्रमी संवेदक
3- सक्रिय व निष्क्रिय संवेदक
4- चित्रीय व अंकीय संवेदक
1- वायव कैमरे
(I) एकल लेंस फ्रेम कैमरा
(ii) बहुलेंस फ्रेम कैमरा
(iii) स्ट्रिप कैमरा
NOTE- किसी क्षेत्र का सैन्य आवेक्षण करने के लिए स्ट्रीप कैमरे का उपयोग किया जाता है।
(iv) विशालदर्शी कैमरा
2- इलेक्ट्रॉनिक कैमरा- इस प्रकार के कैमरे डिजिटल कैमरे कहे जाते हैं।
3- बहुस्पेक्ट्रमी क्रमवीक्षक (Multispectral Scanner)
(I) व्हिस्क ब्रूम बहुस्पेक्ट्रमी क्रमवीक्षक
(ii) पुशब्रूम बहुस्पेक्ट्रमी क्रमवीक्षक
4- तापीय संवेदक
5- लघुतरंग संवेदक
(I) रडार सिस्टम
(ii) लघुतरंग उर्जा मापी
(iii) लघुतरंग क्रमवीक्षक उर्जा मापी
दूर संवेद के उपग्रह प्रोग्राम
- USA का लैण्डसेट प्रोग्राम
- फ्रांस का स्पोर्ट प्रोग्राम
भारत में दूर संवेद उपग्रह प्रोग्राम की स्थापना में होमी जहांगीर भाभा क े कस्तूरीरंगन UR राव विक्रम साराभाई P रामा पिशारोटी जैसे महानतम वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पिशारोटी ने नारियल की कृषि (केरल) मैं लगाने वाले बिल्ट-रूट रोग की पहचान हेतु दूर संवेद का प्रयोग किया। भारत के उपग्रह आधारित दूर संवेद कार्यक्रम को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
- प्रयोगात्मक अंतरिक्षीय दूर संवेद कार्यक्रम
- सक्रियात्मक अंतरिक्षीय दूर संवेद कार्यक्रम
- भावी अंतरिक्ष प्रोग्राम
प्रयोगात्मक अंतरिक्षीय दूर संवेद प्रोग्राम- इसरो ने रूस की मदद से 1975 में आर्यभट्ट नामक भारत का पहला दूर संवेदी उपग्रह प्रक्षेपित किया था। भास्कर रोहिणी श्रेणी के उपग्रह भी इसी चरण के प्रमुख भारतीय उपग्रह प्रोग्राम थे। भारत ने 1981 में Apple नामक प्रथम भू-तुल्यकारी उपग्रह को फ्रेंच गोयाना के कौरू अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया था।
सक्रियात्मक अंतरिक्षीय दूर संवेद कार्यक्रम
भारत ने IAISAT तथा IRS श्रेणी के उपग्रह कार्यक्रम इस चरण के प्रमुख अंतरिक्षीय प्रोग्राम रहे हैं। IRS श्रेणी के उपग्रहों को दूर संवेदक का दर्जा प्रदान किया गया। PSLB इस चरण का प्रमुख प्रक्षेपणयान है। काटोसेट, रिसेट आदि इस चरण के प्रमुख IRS श्रेणी के उपग्रह हैं।
वायो फोटोचित्र तथा हवाई सर्वेक्षण से संबंधित कुछ प्रमुख शब्द
मुख्य बिंदु- कैमरे के लेंस के केंद्र से गुजरने वाली कोई रेखा जिस बिंदु पर फिल्म को 90 डिग्री के कोण पर स्पर्श करती है उस बिंदु को फोटो चित्र का मुख्य बिंदु कहते हैं।
निर्देश चिन्ह- कैमरे के भीतर चारों कोनों में कुछ दिन बने होते हैं। + या – बने होते हैं जो किसी फोटो चित्र पर अंकित हो जाते हैं।
साहुल बिंदु- कैमरे के लेंस के केंद्र से होकर गुजरने वाली कोई ऊर्ध्वाधर रेखा जिस बिंदु पर फिल्म को स्पष्ट करती है वह बिंदु साहुल बिंदु कहलाती है मुख्य बिंदु की तरह साहुल बिंदु का भी धरातल पर एक समजात बिंदु होता है।
ऊर्ध्वाधर फोटो चित्र में मुख्य बिंदु तथा साहुल बिंदु दोनों एक होते हैं।
समकेंद्र- वायु फोटो चित्र में समकेंद्र या Isocenter उस बिंदु पर स्थित है जहां पर लेस से होकर जाने वाली कोई देखा 90- के कोण पर फिल्म पर मिलती है। यहां थीटा कैमरे की नती का धरातल पर क्षैतिज तल से अथवा वायु फोटो चित्र पर नति का ऊर्ध्वाधर तल से मापा गया कोण है।
नति या नति विरूपण- कैमरे के अक्ष का ऊर्ध्वाधर स्थिति से झुकाव नति कहलाता है तथा वायु फोटो चित्र में कैमरे की नति से किसी क्षेत्र की वास्तविक आकृति का जो विकरीत रूप अंकित होता है उसे नतिविरूपण कहते हैं।
सभी प्रकार के वायु फोटोचित्र में नतिविरूपण थोड़ी बहुत मात्रा में उपस्थित रहता है।
अतिव्यापन (overlapping) वायु फोटोग्राफी के समय दो संलग्न क्षेत्रों के फोटोचित्रो में अतिव्यापन होना सामान्य बात है। अतिव्यापन के अंतर्गत दो संलग्न क्षेत्रों के फोटो चित्र में अतिव्यापन होना सामान्य बात है। अतिव्यापन के अंतर्गत दो संलग्न क्षेत्रों के कामन भाग (क्षेत्र) को रखते हैं। वायु फोटो चित्रों में अतिव्यापन दो तरह से देखा जाता है। उड़ान की दिशा में अतिव्यापन की स्थिति में अतिव्यापन क्षेत्र का लगभग 60% भाग आता है। जबकि पार्श्विक अतिव्यापन में 25-30% की पुनरावृति देखी जाती है।
संयुग्मी- अतिव्यापन के फलस्वरूप प्रत्येक वायु फोटो चित्र के मुख्य बिंदु के पहले व अगले वायु चित्रों में भी पुनरावृति हो जाती है पुनरावृति वाले इन दो बिंदुओं को संयुग्मी बिंदु कहते हैं। इसका अर्थ है कि एक मुख्य बिंदु के दो संयुग्मी बिंदु होते हैं। इन संयुग्मी बिंदुओं के बीच औसत दूरी फोटो वेसे कहलाती है।
उड्डयन ऊंचाई- हवाई सर्वेक्षण करते समय वायुयान की आधार तल से जो ऊंचाई होती है उसे उड्डयन ऊंचाई कहते हैं तथा फोटोग्राफी तल अर्थात धरातल से वायुयान की ऊंचाई उड्डयन तुंगता कहलाती है। वायुयान की उड्डयन तुंगता जितनी अधिक होगी उतना ही फोटो चित्र में धरातल का अधिक भाग अंकित होगा तथा फोटो चित्र की मापनी छोटी होती जाएगी।
वायु आधार- विमान के उड्डयन मार्ग पर किन्ही दो संलग्न Expose स्टेशनों के बीच की दूरी वायु आधार कहलाती है। सभी Expose स्टेशन परस्पर संबद्ध अपने-अपने वायु फोटो के मुख्य बिंदुओं के लंबवत ऊपर उपस्थित होते हैं।
क्रेब- पूर्व निश्चित उड़ान रेखा से वायुयान मार्ग के विचलन की स्थिति में कैमरे की स्थिति तथा उड़ान रेखा के सामंजस्य में अंतर उत्पन्न हो जाता है जिसे क्रेब या क्रेबन कहते हैं। क्रेव होने की दिशा में आवश्यकतानुसार कैमरे को घुमाकर त्रुटि को दूर करते हैं।
सोरैन- यह एक प्रकार का लघुतरंगीय रेडियो उपकरण है। इसका उपयोग फोटो चित्र खींचते समय वायुयान की सही सही स्थिति जानने के लिए किया जाता है।
उड़ान मानचित्र- इस मानचित्र में सर्वेक्षण किए जाने वाले क्षेत्र नियंत्रित किए जाने वाले बिंदुओं तथा उड़ान रेखाएं बिंदुऐ अंकित हो जाते हैं। उड़ान मानचित्र ना होने की स्थिति में पहले उड़ान की सहायता से धरातल पर अविक्षण आवश्यक संख्या में नियंत्रक बिंदु करने पड़ते हैं।
ऊंचाई विरूपण- धरातलीय उच्चावच के कारण वायु फोटो चित्र में उत्पन्न हुई विकृति को ऊंचाई विरूपण अथवा अरिय विरूपण कहते हैं।
धरातल पर स्थित सभी ऊर्ध्वाधर विवरण वायु फोटो चित्र में क्षैतिज अंकित होते हैं। जिससे ऊंचाई प्रदर्शित करने वाले बिंदुओं का अरिय विस्थापन हो जाता है। यह आरिय विस्थापन ही ऊंचाई विरुपण होता है। कोई विरूपण जितना अधिक ऊंचा होगा धरातल पर उसके मुख्य बिंदु से दूरी जितनी होगी उतना हीं उस चित्र का फोटो में अरिय विस्थापन अधिक होगा।
सभी प्रकार के वायु फोटोचित्र में नतिविरूपण थोड़ी बहुत मात्रा में उपस्थित रहता है।
अतिव्यापन (overlapping) वायु फोटोग्राफी के समय दो संलग्न क्षेत्रों के फोटोचित्रो में अतिव्यापन होना सामान्य बात है। अतिव्यापन के अंतर्गत दो संलग्न क्षेत्रों के फोटो चित्र में अतिव्यापन होना सामान्य बात है। अतिव्यापन के अंतर्गत दो संलग्न क्षेत्रों के कामन भाग (क्षेत्र) को रखते हैं। वायु फोटो चित्रों में अतिव्यापन दो तरह से देखा जाता है। उड़ान की दिशा में अतिव्यापन की स्थिति में अतिव्यापन क्षेत्र का लगभग 60% भाग आता है। जबकि पार्श्विक अतिव्यापन में 25-30% की पुनरावृति देखी जाती है।
संयुग्मी- अतिव्यापन के फलस्वरूप प्रत्येक वायु फोटो चित्र के मुख्य बिंदु के पहले व अगले वायु चित्रों में भी पुनरावृति हो जाती है पुनरावृति वाले इन दो बिंदुओं को संयुग्मी बिंदु कहते हैं। इसका अर्थ है कि एक मुख्य बिंदु के दो संयुग्मी बिंदु होते हैं। इन संयुग्मी बिंदुओं के बीच औसत दूरी फोटो वेसे कहलाती है।
उड्डयन ऊंचाई- हवाई सर्वेक्षण करते समय वायुयान की आधार तल से जो ऊंचाई होती है उसे उड्डयन ऊंचाई कहते हैं तथा फोटोग्राफी तल अर्थात धरातल से वायुयान की ऊंचाई उड्डयन तुंगता कहलाती है। वायुयान की उड्डयन तुंगता जितनी अधिक होगी उतना ही फोटो चित्र में धरातल का अधिक भाग अंकित होगा तथा फोटो चित्र की मापनी छोटी होती जाएगी।
वायु आधार- विमान के उड्डयन मार्ग पर किन्ही दो संलग्न Expose स्टेशनों के बीच की दूरी वायु आधार कहलाती है। सभी Expose स्टेशन परस्पर संबद्ध अपने-अपने वायु फोटो के मुख्य बिंदुओं के लंबवत ऊपर उपस्थित होते हैं।
क्रेब- पूर्व निश्चित उड़ान रेखा से वायुयान मार्ग के विचलन की स्थिति में कैमरे की स्थिति तथा उड़ान रेखा के सामंजस्य में अंतर उत्पन्न हो जाता है जिसे क्रेब या क्रेबन कहते हैं। क्रेव होने की दिशा में आवश्यकतानुसार कैमरे को घुमाकर त्रुटि को दूर करते हैं।
सोरैन- यह एक प्रकार का लघुतरंगीय रेडियो उपकरण है। इसका उपयोग फोटो चित्र खींचते समय वायुयान की सही सही स्थिति जानने के लिए किया जाता है।
उड़ान मानचित्र- इस मानचित्र में सर्वेक्षण किए जाने वाले क्षेत्र नियंत्रित किए जाने वाले बिंदुओं तथा उड़ान रेखाएं बिंदुऐ अंकित हो जाते हैं। उड़ान मानचित्र ना होने की स्थिति में पहले उड़ान की सहायता से धरातल पर अविक्षण आवश्यक संख्या में नियंत्रक बिंदु करने पड़ते हैं।
ऊंचाई विरूपण- धरातलीय उच्चावच के कारण वायु फोटो चित्र में उत्पन्न हुई विकृति को ऊंचाई विरूपण अथवा अरिय विरूपण कहते हैं।
धरातल पर स्थित सभी ऊर्ध्वाधर विवरण वायु फोटो चित्र में क्षैतिज अंकित होते हैं। जिससे ऊंचाई प्रदर्शित करने वाले बिंदुओं का अरिय विस्थापन हो जाता है। यह आरिय विस्थापन ही ऊंचाई विरुपण होता है। कोई विरूपण जितना अधिक ऊंचा होगा धरातल पर उसके मुख्य बिंदु से दूरी जितनी होगी उतना हीं उस चित्र का फोटो में अरिय विस्थापन अधिक होगा।
हवाई फोटोग्राफ की विधियां
पिन बिंदु फोटोग्राफी- वायुयान से धरातल की किसी एक वस्तु विशेष ऊर्ध्वाधर व त्रियत फोटोचित्र खींचना तीन बिंदु फोटोग्राफी कहलाता है। इस विधि में एक या दो फोटोचित्र ही खींचना पर्याप्त है कारखाना, पुल, हवाई अड्डे आदि की फोटोग्राफी में इस विधि का उपयोग किया जाता है।
ब्लॉक फोटोग्राफी- बड़े-बड़े सर्वेक्षण क्षेत्रों के लिए इस विधि का उपयोग किया जाता है इसके अंतर्गत पहले किसी क्षेत्र को कई समानांतर पंक्तियों में बांट दिया जाता है तत्पश्चात इन पंक्तियों को ऊपर सर्पिलाकार रूप में वायुयान द्वारा फोटोग्राफी की जाती है। इस विधि में अतिव्यापित फोटो चित्र खींचे जाते हैं जैसा कि हम जानते हैं कि दो क्रमागत फोटो चित्रों में 60% तथा दो संलग्न पतियों के फोटो चित्र में 25 से 30% की अतिव्यापन की स्थिति देखी जाती है। इस अतिव्यापन से त्रिविम दर्शी या स्टीरियोस्कोप यंत्र से देखने योग्य फोटो चित्र के जोड़े प्राप्त होते हैं। उस यंत्र के नीचे दो क्रमागत तथा अतिव्यापित फोटोचित्र रखकर उन फोटोचित्रों में अंकित धरातल का त्रिविम स्वरूप देखा जा सकता है।
फोटोग्राफी हेतु समय संबंधी बाध्यताऐ- पर्णपाती वनो की फोटोग्राफी के लिए बसंत का समय उचित होता है। फसल क्षेत्रों के लिए खड़ी फसल के दौरान फोटोग्राफी सर्वोत्तम मानी जाती है। 1pm- 2pm बजे का समय फोटोग्राफी का समय सर्वोत्तम नहीं माना जाता है क्योंकि इस समय फोटोग्राम में धरातलीय विवरणों की लंबी-लंबी छायाए बन जाती हैं जिससे अन्य धरातलीय विवरण ओजल हो जाएंगे।
वायु फोटो चित्रों के प्रकार
1- तिर्यक फोटोचित्र- वायुयान में नति दिशा में लगे कैमरे द्वारा लिए गए फोटोचित्र तिर्यक फोटोचित्र कहलाते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं-
- अल्पतिर्यक कोण फोटोचित्र
- उच्च कोण फोटोचित्र
- 3 डिग्री से 30 डिग्री तक के झुकाव की दिशा में लिए गएफोटोग्राफ अल्पकोण तिर्यक फोटोग्राफ तथा 30 डिग्री से 60 डिग्री झुकाव की दिशा में लिए गए फोटोग्राफ उच्च कोड तिर्यक फोटोग्राफ कहलाते हैं।
ऊर्ध्वाधर फोटोग्राफी- वायुयान में लंबवत दिशा में लगे हुए कैमरे के द्वारा खींचे गए फोटोग्राफ ऊर्ध्वाधर फोटोग्राफ कहलाते हैं। सामान्यतया कोणांक पथ पर वायुयान की दिशा पूर्णतया क्षैतिज नहीं रह पाती है जिसके कारण 3 डिग्री तक के झुकाव वाले फोटोग्राफी को हम ऊर्ध्वाधर फोटोग्राफी के श्रेणी में रखते हैं।
आभासी फोटोग्राफी- इस पद्धति में वायुयान में लगे दोनों कैमरे के द्वारा एक ही क्षेत्र के दो अलग-अलग तिर्यक फोटोचित्र एक साथ खींचे जाते हैं। उड़ान की दिशा में स्थित अगले कैमरे का फोटोचित्र पिछला कैमरा का फोटोचित्र अगला कहलाता है।