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अर्जक संघ की विचारधारा
अर्जक संघ के विषय में जानने से पहले हम इसके संस्थापक राम स्वरुप वर्मा के विषय में चर्चा करेंगें राजनीत का कबीर कहे जाने वाले वर्मा जी का जन्म सन 22 अगस्त 1923 ई. को कानपुर देहात में हुआ था। इनकी मृत्यु 19 अगस्त 1998 ई में हुई। इनके जन्म दिन को हम क्रांति दिवस के रूप में मनाते है। वर्मा जी चार भाईयों में सबसे छोटे थे अन्य तीन भाई गांव में रहकर खैती किसानी करतै थे तथा वर्माजी के पढ़ाई लिखाई पर ही न केवल ध्यान देकर उन्हें उनकी रुचि के अनुसार कार्य करने के लिए प्रोत्साहित भी किया। बचपन से ही वर्माजी मेधावी छात्र थे सन 1949 ई. इलाहबाद विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य से एम. ए. की उपाधि प्राप्त की। आगे चलकर भारतीय प्रशासनिक सेवा की मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण की और इतिहास बिषय मे सर्वोच्च अंक प्राप्त की जबकी इतिहास इनका कभी विषय नहीं रहा। पर इन्होंन नौकरी न करने का दृढ़ निश्चय कर लिया था जिसके कारण साक्षात्कार नहीं दिया।
राजनीतिक जीवन– वर्मा जी सर्वप्रथम सन 1957 मे सोशल पार्टी से भोगनीपुर विधानसभा से सदस्य चुने गये उस समय इनकी उम्र महज मात्र 34 वर्ष थी। 1991 ई मे छठी बार शोषित समाज दल से विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए। विभिन्न प्रकार के सामाजिक आंदोलनों में भाग लेने के कारण ये कई बार जेल गये। 1967-68 में 20 करोड़ का बजट पेश करके पूरे आर्थिक जगत को आश्चर्य में डाल दिया। उस समय जब विश्व मीडिया ने एक साक्षात्कार में इस रहस्य को जानना चाहा तो इन्होंने संक्षेप में ही जवाब दिया कि किसान से अच्छा अर्थशास्त्री और कुशल प्रशासक कोई नहीं हो सकता क्योंकि लाभ हानि के नाम पर लोग अपने व्यवसाय बदल देते है पर किसान सूखा-बाढ़ झेलते हुए भी किसानी करना नहीं छोड़ता है।
वर्माजी समाजवादी विचारधारा से प्रभावित थे और जब इनकी मुलाकात डा लोहिया से हुई तो ये संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए। डा लोहिया को वर्मा जी का जिन्दगी के प्रति फकीराना अंदाज और ईमानदार, विचारशील व्यक्तिव बहुत भाया। ऐसे में वर्माजी डा लोहिया के विश्वसनीय मित्र बन गए। सचमुच वर्माजी देश और समाज के लिए कबीर की तरह अपने घर फूंकने वाले राजनैतिक कबीर थे।
राजनीतिक विचार- उन्हें राजनीतिक स्वर्थगत समझौते से शक्त नफरत थी। उनका ध्येय राजनीति के माध्यम से एक ऐसे सामाजिक संरचना करनी थी जिसमें हर व्यक्ति पूरी मानवीय गरिमा के साथ जीवनयापन कर सके। उनका मानना था कि एक राजनेता के लिए सबसे आवश्यक यह है कि समाज की समस्याओं के प्रति उसकी एक गहरी और जमीनी समझ हो जिसे वह हल करने के लिए प्रतिबद्ध हो। जो जनता होती है वह अपने राजनेता को अपना आदर्श मानती हो इसीलिए राजनेता को सादा, ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ होना निहायत जरूरी है।
सामाजिक विचार- समाज में वर्माजी समता के हिमायती थे। मानव समाज में जो विषमता रुपी बिष विघमान है उसे दूर किया जाय। जिस मानव समाज में जितनी ही समानता होगी वह उतना ही प्रगतिपथ पर जायेगा। उनका मत था-‘जिसमें समता की चाह नहीं वह बढ़िया इंसान नहीं। समता बिन समाज नहीं बिन समाज जनराज नहीं।।” इसका मतलब तो आपको लोग समझ गये होंगे।
आर्थिक विचारधारा – वर्माजी ने श्रम के जो दो वर्ग निर्धारित किये गये है – 1 शारीरिक श्रम 2 मानसिक श्रम। जिसमें समाज के द्वारा मानसिक श्रम करने वाले को श्रेष्ठ माना जाता है जबकि शारीरिक श्रम करने वाले को हेय समझा जाता है। इस विचारधारा को वर्माजी ने खारिज कर दिया तथा शारीरिक श्रम को सम्मान दिया। उनका कहना है कि शारीरिक श्रम ही उत्तम है क्योंकि इसी से उत्पादन, निर्माण और विभिन्न प्रकार के जीवनोपयोगी कार्य किये जाते है। बिस्तर पर पड़े पड़े आप चाहे लाख बुद्धि लगा ले पर शारीरिक श्रम के अभाव में कोई भी निर्माण व उत्पादन कार्य संभव नहीं है।
धार्मिक विचार- उन्होंने ने धर्म के नाम पर चल रहे पाखण्ड, अंधविश्वास आदि का विरोध किया तथा धर्म के प्रति जो ईश्वर रुपी सत्ता की कल्पना की गई है उसे नकारा। उनका मत था कि मनुष्य की सृजन ईश्वर ने न करके पदार्थों से हुई है। उन्होंने डार्विन के ओरिजिन आफ स्पसीज के माध्यम से इस बात को वैज्ञानिक ढंग से स्पष्ट किया है। उनका मानना था कि इंसानियत ही मजहब है। विवेक बुद्धि का मानवहित में प्रयोग ही धर्म है।
इन्ही सभी विचारधाराओं को समेटते हुए इन्होंने 1 जून 1968 ई में अर्जक संघ की स्थापना की। वे चतुर्दिक क्रांति अर्थात् सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक क्रांति की लड़ाई एक साथ लड़े जाने पर जोर देते है। अर्जक रुपी विश्व दृष्टि के प्रज्ज्वलित होते ही विषमता और शोषण भस्म हो जायेगा। इस प्रकार अर्जक संघ दो बातें मोटी मोटी सबको इज्जत सबको रोटी में विश्वास करते हुए अपने 14 मानववादी त्योहारों के माध्यम से पाखंडो को खत्म करने तथा पहले जानो तब मानो का हिमायती है।सभ्यता तब तक अपने उत्कर्ष पर नहीं पहुंचेगी जब तक आखिरी चर्च का आखिरी पत्थर आखिरी पादरी पर नहीं गिरता…. एमिल जोला फ्रांसीसी लेखक
धन्यवाद
जय अर्जक जय मानव
जय विज्ञान. जय संविधान

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