सूर्यातप ( Insolation )

  • वायुमण्डल तथा पृथ्वी को ऊष्मा ( heat ) का प्रधान स्रोत सूर्य है ।
  • सौर्थिक ऊर्जा को ही ‘ सूर्यातप ‘ कहते हैं ।

ट्रिवार्था के शब्दों में , “ लघु तरंगों के रूप में संचालित ( ल ० 1/250 से 1 / 6700 मिलीमीटर ) और 1,86,000 मील प्रति सेकेण्ड की गति से भ्रमण करती हुई प्राप्त सौर्यिक ऊर्जा को सौर्य विकिरण या ‘ सूर्यातप ‘ कहते हैं ” ।

  • सूर्य धधकता हुआ गैस का वृहद गोला है , जिसकी व्यास पृथ्वी से 100 गुना तथा उसके आयतन से 100,000 गुना अधिक है ।
  • सूर्य के धरातल का तापमान 11,000 ° F या 6000 ° C तथा केन्द्रीय भाग का 50,000,000 F बताया जाता है ।
  • पृथ्वी के वायुमण्डल का औसत तापमान 250K ( -23 ° C ) तथा पृथ्वी के धरातल का औसत तापमान 2830K ( 10 ° C या 50 ° F ) ( OC = OK – 273 , जबकि K = केलविन ) होता है ।
  • सूर्य की ऊर्जा का प्रधान स्रोत उसका आन्तरिक भाग है जहाँ पर अत्यधिक दबाव तथा उच्च तापमान के कारण नाभिकीय फ्यूजन के कारण हाइड्रोजन का हीलियम में रूपान्तर होने से ऊष्मा का जनन होता है ।
  • यह ऊष्मा परिचालन तथा संवहन द्वारा सूर्य की बाहरी सतह तक पहुँचती है ।
  • सूर्य की वाह्य सतह से निकलने वाली ऊर्जा को फोटान कहते हैं ।
  • इसी तरह सूर्य की वाह्य सतह को फोटोस्फीयर कहते हैं ।
  • इस सतह से ऊर्जा का विद्युतचुम्बकीय तरंग द्वारा विकिरण होता है ।
  • सौर्थिक स्थिरांक ( solar constant ) सूर्य के धरातल के प्रत्येक वर्ग इंच से विकीर्ण ऊर्जा 100,000 अश्वशक्ति के बराबर होती है ।
  • सूर्य की बाह्य सतह ( फोटोस्फीयर ) से निकलने वाली ऊर्जा प्राय : स्थिर रहती है ।
  • इस तरह पृथ्वी की सतह के प्रति इकाई क्षेत्र पर सूर्य से प्राप्त ऊर्जा प्राय : स्थिर रहती है । इसे सौर्थिक स्थिरांक ( solar con stant ) कहते हैं । इस तरह सौर्थिक स्थिरांक सूर्य के विकिरण की दर को प्रदर्शित करता है जो प्रति वर्ग सेण्टीमीटर प्रति मिनट 2 ग्राम कैलरी ( या 2 लैंजली ) है ।
  • सूर्य से 93,000,000 मील ( औसत ) दूर स्थित पृथ्वी सौर्यिक ऊर्जा का केवल 1 / 2,000,000,000 भाग ही प्राप्त कर पाती है । परन्तु यह स्वल्प मात्रा भी 23,000,000,000,000 अश्वशक्ति के बराबर हो जाती है ।
  • सूर्य से प्राप्त इस न्यून ऊर्जा के कारण ही भूतल पर सभी प्रकार के जीवों का अस्तित्व सम्भव हो सका है ।
  • इसी कारण धरातल पर पवन संचार , सागरीय धाराओं का प्रवाह तथा मौसम एवं जलवायु का आविर्भाव होता है । प्रत्येक वस्तु जिसमें ऊष्मा होती है , विकिरण करती है । नियमानुसार जो वस्तु जितनी अधिक गर्म होती है , उसकी तरंगें उतनी ही छोटी होती हैं । इसी कारण से सूर्य विकिरण द्वारा निकली ऊष्मा लघु तरंगों के रूप में होती हैं तथा प्रति सेकेण्ड 1,86,000 मील की गति से भ्रमण करती हैं । इसके विपरीत अपेक्षाकृत कम तापमान वाली वस्तु से विकिरण तो कम होता है , परन्तु दीर्घ तरंग के रूप में होता है । उदाहरण के लिए , पृथ्वी से विकीर्ण ऊर्जा दीर्घ तरंगों के रूप में होती है । सूर्यातप के स्रोत वास्तव में सौर्यिक ऊर्जा का विकिरण सूर्य की वाह्य सतह यानी प्रकाशमण्डल ( photosphere ) से होता है परन्तु ऊर्जा का स्रोत तो सूर्य का आन्तरिक भाग होता है । ज्ञातव्य है कि सूर्य एक विशाल गैसीय पिण्ड है जिसकी व्यास 1382,000 किलोमीटर है जो पृथ्वी की व्यास की 109 गुनी अधिक है । यह विश्वास किया जाता है कि सूर्य का निर्माण चार प्रमुख

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