महासागरीय नितल के उच्चावच्च

परिचय

पृथ्वी की सतह पर स्थलखंडों की भांति महासागरों  विशेषकर महासागरीय नितल पर विभिन्न प्रकार की स्थलाकृतियों उत्पत्ति का मुख्य कारण भू – संचलन है।सरल शब्दों , अंतर्जनित एवं बहिर्जनित संचलन के सम्मिलित प्रभाव से महासागरीय नितल पर विभिन्न प्रकार की स्थलाकृति की उत्पत्ति होती है।

हम जानते हैं कि ग्लोब के तीन चौथाई भाग पर ( लगभग 71%) जल मंडल का विस्तार है।महासागरों में प्रशांत महासागर सबसे बड़ा है। उसके बाद क्रमशः अटलांटिक व हिंद महासागर का स्थान आता है। महासागरीय तली का रूप महाद्वीपीय किनारे से लेकर महासागरीय नितल तक भिन्न-भिन्न होता है, महासागर की औसत गहराई 3800 मीटर तथा स्थलों की औसतन ऊंचाई 840 मीटर सुनिश्चित की गई है। जिन्हें उच्चता दर्शी वक्र ( hypsographic ) द्वारा प्रदर्शित किया है।

महासागरिय नितल के उच्चावच का वर्गीकरण

  1. महासागरीय मग्न तट ( continental shelves)
  2. महाद्वीपीय मग्न ढाल ( continental slope)
  3. महाद्वीपीय उभार ( continental rise)
  4. गंभीर सागरिय मैदान ( deep sea plain)
  5. महासागरीय गर्त ( oceanic deeps)

महाद्वीपीय मग्न तट-

महाद्वीपीय तट का वह हिस्सा जो जलमग्न रहता है इसकी औसत गहराई 100 फैदम ( 1 फैदम = 6 फीट) तथा ढाल 1अंश से 3 अंश के बीच होता है ।जहां ढाल  प्रवणता कम होने के कारण कार्बनिक एवं अकार्बनिक अवसादो का सर्वाधिक निक्षेपण यही होता है,  गहराई कम होने के कारण इस क्षेत्र तक सूर्य की किरणों की पहुंच होती है, यही कारण है कि यह क्षेत्र जैविक घटकों के विकास के अत्यंत अनुकूल होता है। इसलिए महासागरीय मग्न तट सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि यह क्षेत्र समुंद्री पारितंत्र के विकास का आधार है।

महाद्वीपीय मग्नत तट समस्त महासागरीय नितल के क्षेत्रफल का 8 .6%  क्षेत्र धारण करता है ।इसका सर्वाधिक विस्तार अटलांटिक महासागर में (% के मामले में) उसके बाद प्रशांत एवं हिंद महासागर का स्थान आता है।

मग्न तट के निर्माण के कारण :-

1. समानांतर भ्रंशन की क्रिया

2. प्लेस्टोसीन हिमयुग

3. संवहन तरंग

महाद्वीपीय मग्न ढाल :-

मग्न  तट से संलग्न वह क्षेत्र जहां ढाल  प्रवणता अधिक होती है, उसे महाद्वीपीय मग्न ढाल कहते हैं।

ढाल अधिक होने के कारण यहां अवसादो का निक्षेपण नहीं हो पाता है जबकि अपरदन अधिक होने के कारण इस क्षेत्र में अंतः सागरिय कैनियन (submarine canyons) का विकास होता है।

इसका विस्तार समस्त महासागरीय क्षेत्र के 8.5% क्षेत्र पर पाया जाता है। प्रतिशत की दृष्टिकोण से अटलांटिक महासागर पहले स्थान पर है, इसके बाद क्रमश: प्रशांत व हिंद महासागर का स्थान आता है।

इसका औसत ढाल कोण 5° होता हैं।

अंतः सागरीय कन्दरा

  अंतः सागरीय कंदरा अर्थात कैनियन महाद्वीपीय मग्नत तक तथा मग्न ढाल पर संकरें गहरे तथा खड़े दीवार से युक्त घाटियां होते हैं। यह कंदराएं स्थल पर निर्मित नदियों के कैनियन के समान होती हैं। निर्माण प्रक्रम के आधार पर कैनियन दो प्रकार के होते हैं।

1- हिमानी द्वारा निर्मित कैनियन

2- हिमानी के अलावा अन्य प्रक्रमो से निर्मित कैनियन।

 शैफर्ड एवं वीयर्ड ने विश्व के 102 कैनियनो का अध्ययन किया तथा बताया कि कैनियन के ऊपरी भाग का ढाल सबसे अधिक तथा निचली भाग का सबसे कम होता है।

  • अंत: समुद्री कैनियन के निर्माण से संबंधित सिद्धांत:-

डाना का भू- पृष्ठीय अपरदन का सिद्धांत – शेफर्ड भी इससे संबंधित है

पटल विरूपणी सिद्धांत 

अंतः सागरीय घनत्व तरंग सिद्धांत (सैलिश  एवं फ्लोरेल)

पंक तरंग सिद्धांत (डेविश, डेली, रिदर)

महाद्वीपीय उभार:-

महाद्वीपीय ढाल एवं  गहरे सागरीय मैदान के मध्य महाद्वीपीय क्रस्ट एवं महासागरीय क्रस्ट से निर्मित संक्रमण क्षेत्र  महाद्वीपीय उभार होता है।  इसका ढाल प्रवणता से महाद्वीपीय मग्न ढाल से कम किंतु महासागरीय मैदान से अधिक होता है।

गहरे सागरीय मैदान:-

समस्त महासागरों के 75.9 % क्षेत्र पर इसका विस्तार पाया जाता है। यह सर्वाधिक विस्तृत क्षेत्र होता है ।भू संचलन का प्रभाव नगण्य होने के कारण इसे अबाइसल ( Abysiol ) या अबाध मैदान कहते हैं । इस इस भाग में ज्वालामुखी प्रक्रिया से निर्मित  द्वीप को सी माउंट ( sea mount ) या गियोट कहते हैं। Sea mount के विपरीत गियोट का ऊपरी भाग सपाट होता है।

प्लेटो के अपसरण के द्वारा महासागरीय नितल पर भ्रंश घाटी से होने वाली ज्वालामुखी प्रक्रिया के कारण महासागरीय कटको की उत्पत्ति होती है।

ये महासागरीय नितल पर सर्वाधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र होते हैं। जिसका विस्तार एक संकरी पट्टी के रूप में भ्रंश घाटी के समानांतर होता है।

महासागरीय गर्त

 अभिसारी प्लेट सीमान्तो पर महासागरीय प्लेटो के महाद्वीपीय प्लेटो के नीचे क्षेपण होने के कारण महासागरीय गर्तो की उत्पत्ति होती है। इस तरह के गर्त  महासागरीय भागों में महाद्वीपों के सन्निकट निर्मित होते हैं।

महासागरीय – महासागरीय अभिसारी  प्लेट सीमांत पर बने गर्त तटो से दूर खुले सागरों में मिलते हैं।

उल्लेखनीय है कि महासागरीय गर्त महासागरों के सबसे गहरे भाग है जो महासागरीय नितल के लगभग 7% क्षेत्रफल पर फैले हुए हैं। उल्लेखनीय है कि कम क्षेत्रफल किंतु अधिक गहरे खड्ड को गर्त ( Deeps) तथा लंबे खड्ड को खाई ( Trench) कहते हैं। विश्व में सबसे अधिक गर्त प्रशांत महासागर में पता लगाए गए हैं। उसके बाद क्रमशः अटलांटिक वह हिंद महासागर में अधिक संख्या में गर्त पाए गए हैं।

प्रशांत महासागर के प्रमुख गर्त

मेरियाना (11,022) टोंगा (10,882) क्यूराइल (10,498) फिलीपाइन (10,475) करमांडेक (10,047) पेरू – चिली (8,025 ) अल्यूशियन (7,679,) मध्य अमेरिका (6,552) रिक्यू गहराई (6,395)

अटलांटिक महासागर के प्रमुख गर्त

पोर्टोरिको गर्त , केपवर्ड बेसिन गर्त, वालविस कटक

हिंद महासागर के प्रमुख गर्त

सुण्डा गर्त

महासागरीय नितल पर निर्मित विभिन्न उच्चावच्च भू – संचलन के साथ-साथ स्थल स्वरूपीय विशेषताओं से भी प्रभावित होते हैं। जैसे जिस समुद्री तट के निकट पर्वतों का विस्तार पाया जाता हैं ,वहां महाद्वीपीय मग्न तट की चौड़ाई कम जबकि तटीय मैदान की चौड़ाई अधिक होने पर महाद्वीपीय मग्न तट का विस्तार भी अधिक होता है।

विभिन्न महासागरों की उच्चावच्च :- 

अटलांटिक महासागर के उच्चावच्च 

अटलांटिक महासागर की उच्चावच्च का विस्तार समानांतर विश्व के क्षेत्रफल के 1/6 भाग पर है।

इसका क्षेत्रफल प्रशांत महासागर का आधा है। मध्य अटलांटिक कटक इस महासागर का एक महत्वपूर्ण भ्रंश घाटी क्षेत्र है। यह S अक्षर के आकार में लगभग 14400 km उत्तर – दक्षिण में फैला है। भूमध्य रेखा के उत्तर से इसे डॉल्फिन तथा दक्षिण में चैलेंजर उभार कहते हैं। ग्रीनलैंड के दक्षिण में कटक के चौड़ा होने के कारण इसे टेलीग्राफिक पठार के रूप में जाना जाता है। जबकि स्कॉटलैंड एक आईलैंड के बीच में इसे वी विल टामसन कटक कहते हैं। इसी तरह उत्तरी अमेरिका से संलग्न इस कटक को न्यूफाउंड लैंड उभार के नाम से जाना जाता है। भूमध्य रेखा के दक्षिण कटक की एक शाखा वालनिस कटक  के नाम से तथा उभार को रियोग्रैंडी उभार कहते है। लैब्रोडोर ,केपवर्ड ,उत्तरी अमेरिका , ब्राजील , स्पैनिश यहां की  प्रमुख द्रोणीया है। रोमेश पोर्टो रिको इस महासागर के प्रमुख गर्त है।

प्रशांत महासागर के उच्चावच्च :-

इसका विस्तार विश्व के 1/3  क्षेत्र पर है।  यह सर्वाधिक गहरे सागरीय मैदान वाला महासागर है । इस महासागर  का  प्रमुख कटक पूर्वी प्रशांत महासागर कटक है।  जिसे अलबट्रास पठार के नाम से जाना  जाता है।  मेरियाना (11,022) टोंगा (10,882) क्यूराइल (10,498) फिलीपाइन (10,475) करमांडेक (10,047) पेरू – चिली (8,025 ) अल्यूशियन (7,679,) मध्य अमेरिका (6,552) रिक्यू गहराई (6,395)

उल्लेखनीय है कि मेरियाना गर्त विश्व का सबसे गहरा गर्त है।

हिंद महासागर के उच्चावच्च:-

90° पूर्वी कटक इस महासागर की एक महत्वपूर्ण स्थलाकृति है। जिसे एम्स्टर्डम ,सेंटपाल पठार के नाम से दक्षिणी हिंद महासागर में जाना जाता है।इसे करगुलेन गासवर्ग कटक, इंडियन अंटार्कटिक कटक, साकोत्रा चैगोस कटक, प्रिंस एडवर्ड क्रोजेट कटक के नाम से कई स्थानों पर जाना जाता है।   सुंडा गर्त इस महासागर का सबसे महत्वपूर्ण गर्त है। अंडमान, मॉरीशस, नेटाल इस महासागर की प्रमुख द्रोणिया है।

इस प्रकार देखा जाए तो महासागरीय नितल के उच्चावच्च व स्थल रूपों की विशेषताओं में स्थानिक भिन्नता दिखाई पड़ती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *