शुष्क एवं अर्धशुष्क स्थलाकृतियां परिचय– पवन एक महत्वपूर्ण तृतीय स्थलाकृति के निर्माण का अभिकर्ता है। वायु शुष्क एवं अर्धशुष्क क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की अपरदन एवं निक्षेप जनित स्थलाकृतियो का निर्माण करता है। उल्लेखनीय है कि 10 इंच (25 सेंटीमीटर) से कम वार्षिक वाले क्षेत्रों को मरुस्थल (शुष्क) तथा 10 से 20 इंच (25 से …
सागर के तटवर्ती क्षेत्र में अनेक अपरदन हुआ निक्षेप जनित स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। इनके निर्माण में सागरीय तरंग, सागरिया धारा, ज्वारीय तरंग, सुनामी आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। फिर भी इनमें सागरीय तरंगों को भू आकृति कार्य (अपरदन निक्षेप परिवहन) सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि सागरीय तरंगे सर्वाधिक शक्तिशाली और प्रभाव कारी …
भूसन्नति एवं पर्वत संरचना- प्रथम श्रेणी के उच्चावचो (महाद्वीप एवं महासागर) के भूगर्भिक इतिहास का अध्ययन करने से यह ज्ञात होता है कि शुरुआती दौर में स्थल खंडों के मध्य जलपूर्ण गर्त होते थे।दो दृढ़ स्थलखंडो के बीच स्थित इन उथले सकरे जलपूर्ण गर्तों को भूसन्नतियो के नाम पर जाना जाता है। भूसन्नतियो के भूगर्भिक …
आदिकाल से ही पृथ्वी अथवा सौरमंडल तथा ब्रम्हांड की उत्पत्ति के विषय में जानने की जिज्ञासा मानव की सोच विस्तार का केंद्रीय विषय वस्तु रहा शुरुआती दौर में पृथ्वी अथवा सौरमंडल की उत्पत्ति या आयुु संबंधी तथ्य पूर्णतया धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है।जैसे-ईसाई धर्म के अनुसार ईश्वर ने पृथ्वी का निर्माण 4004 ईसा पूर्व को …
अनाच्छादन – अनाच्छादन बर्हिजनित भू-संचलन से संबंधित एक ऐसा संयुक्त प्रक्रम है जिसके अंतर्गत अपक्षय, अपरदन और बृहद क्षरण की क्रियाएं होती हैं। अपक्षय परिवहन की अनुपस्थिति में होने वाली एक ऐसी स्थैतिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा चट्टानों में भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन होता है। परिणाम स्वरूप चट्टानें असंगठित होकर अवसादो में परिवर्तित हो जाती …
भौतिक भूगोल की प्रकृति एवं विषय क्षेत्र –प्राचीन काल से ही भूगोल विचारकों के अध्ययन का एक केंद्र बिंदु रहा है।प्राचीन विचारकों यथा भारतीय , रोमन, यूनानी तथा मध्यकालीन एवं आधुनिक भूगोलवेत्ताओं ने भूगोल को परिभाषित करने का प्रयास किया है ।हम जानते हैं कि भूगोल आंग्ल भाषा के ज्योग्राफी का है। इसकी उत्पत्ति यूनानी …
महासागरीय जल का कार्य कई कारकों के द्वारा संपन्न होता है। जिनमें सागरीय लहर,सागरीय धाराएं सुनामी तथा ज्वारीय तरंग प्रमुख है।महासागरीय बेसिन में उत्पन्न जल के क्षेत्रीय व ऊर्ध्वाधर गति के द्वारा जल के चक्रीय प्रवाह से महासागरीय परिसंचरण का विकास होता है। इस परिसंचरण में जलीय सतह पर उत्पन्न क्षैतिज गति को जलधारा कहते …
परिचय पृथ्वी की सतह पर स्थलखंडों की भांति महासागरों विशेषकर महासागरीय नितल पर विभिन्न प्रकार की स्थलाकृतियों उत्पत्ति का मुख्य कारण भू – संचलन है।सरल शब्दों , अंतर्जनित एवं बहिर्जनित संचलन के सम्मिलित प्रभाव से महासागरीय नितल पर विभिन्न प्रकार की स्थलाकृति की उत्पत्ति होती है। हम जानते हैं कि ग्लोब के तीन चौथाई भाग पर ( लगभग 71%) जल मंडल का विस्तार है।महासागरों में प्रशांत महासागर सबसे बड़ा है। उसके बाद क्रमशः अटलांटिक व हिंद महासागर का स्थान आता है। महासागरीय तली का रूप महाद्वीपीय किनारे से लेकर महासागरीय नितल तक भिन्न-भिन्न होता है, महासागर …