वायुमंडल का संघटन एवं संरचना- पृथ्वी के चारों तरफ कई सौ किलोमीटर से हजारों किलोमीटर की मोटाई में व्याप्त गैसीय आवरण को वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण शक्ति के कारण ही उसके साथ टीका हुआ है। मूलतः वायुमंडल तीन आधारभूत तत्वों से मिलकर बना है-वायुमंडल की रचना दो प्रकार की गैसों के द्वारा …
जंतु जगत-परिचय- इसके अंतर्गत प्राणियों के वितरण एवं उनके ऐतिहासिक विकास का अध्ययन किया जाता है। हम जानते हैं कि सभी जंतु उपभोक्ता होते हैं। पृथ्वी के भूगर्भिक इतिहास में कुछ विशेष कल्पो अथवा युगों में कुछ विशेष प्रजातियों की प्रमुखता रही है।इसी तरह पूर्व में हुए बृहद विलोपन (Mass extinction) के कारण लगभग दो …
सागरी लहरें- सागरीय लहरों, धाराओं, सुनामी, ज्वारीय तरंगों आदि के द्वारा सागरीय जल का कार्य संपन्न किया जाता है। वायु जनित कारकों, चंद्रमा सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति, सागरीय भाग में होने वाली ज्वालामुखी क्रियाओं एवं भूकंपो (अंत: सागरीय भूकंपो एवं अंतः सागरीय ज्वालामुखी) चक्रवातों एवं मानव जनित कारकों के द्वारा क्रमशः वायुजनित तरंगे, ज्वारीय तरंगे, …
चट्टान (Rocks)- चट्टान बालुका पत्थर एवं ग्रेनाइट की तरह कठोर, चीका एवं रेत की तरह मुलायम खड़िया मिट्टी एवं चूना का पत्थर की भांति प्रवेश्य अथवा शैल एवं स्लेट के सदृश अप्रवेश्य हो सकती है।क्रस्ट में अधिकता से मिलने वाले तत्व क्रमशः- ऑक्सीजन>सिलिकॉन>एल्युमिनियम एवं लोहापपड़ी की शैलों की रचना- 6 खनिज- फेल्सफार, क्वार्टज, पायरोक्सीस, एम्फीवोल्स …
ज्वालामुखीयता की संकल्पना – पृथ्वी पर अन्तर्जनित अकास्मिक भू संचलन के अंतर्गत ज्वालामुखी प्रक्रिया का संबंध पृथ्वी के आंतरिक भागो में मैग्मा की उत्पत्ति से लेकर उनके आंतरिक परतो से होते हुए पृथ्वी की सतह पर मैग्मा का ज्वालामुखी के रूप में उदगार होने से होता है। पृथ्वी के आंतरिक भागों में बना मैग्मा जब …
परिचय– चूना के पत्थर वाले चट्टानों के क्षेत्र को कार्स्ट क्षेत्र कहते हैं। तथा भूमिगत जल द्वारा निर्मित कार्स्ट क्षेत्रों के स्थलाकृति को कार्स्ट स्थलाकृति कहते हैं। उल्लेखनीय है कि ऊपरी सतह के नीचे चट्टानों के छिद्रों तथा दरारों में स्थित जल को भूमिगत जल कहते हैं। वर्षा का जल विभिन्न रूपों में सतह से …