Day: March 29, 2021

नदी

बहते हुए जल के द्वारा जल गति क्रिया पवन द्वारा अपवहन तथा हिमनद के लिए उत्पाटन की क्रिया से असंगठित चट्टानें अपरदीत होती हैं । इसी प्रकार अपघर्षण अपरदन के कारकों तथा अवसादों के सम्मिलित प्रभाव से होने वाली एक क्रिया है। जिसके द्वारा संलग्न सतह का कटाव होता है अर्थात अपरदन के यंत्र/कारक संलग्न …

कार्स्ट भू-आकारिकी

परिचय– चूना के पत्थर वाले चट्टानों के क्षेत्र को कार्स्ट क्षेत्र कहते हैं। तथा भूमिगत जल द्वारा निर्मित कार्स्ट क्षेत्रों के स्थलाकृति को कार्स्ट स्थलाकृति कहते हैं। उल्लेखनीय है कि ऊपरी सतह के नीचे चट्टानों के छिद्रों तथा दरारों में स्थित जल को भूमिगत जल कहते हैं। वर्षा का जल विभिन्न रूपों में सतह से …

हिमनद

परिचय– हिमनद अन्य अपरदन के कारकों के समान भूतल पर समतल स्थापना का कार्य करता है, हालांकि इसके अपरदनात्मक कार्य काफी विवादग्रस्त हैं। हिमनद धरातल पर सरिताओं के समान ही हिमयुक्त नदि के समान होते हैं उनकी गति मंद होती हैै। हिमनद वास्तव में हिम समूह होते हैं जो हिमक्षेत्र से गुरुत्व के कारण प्रवाहित …

पवन

शुष्क एवं अर्धशुष्क स्थलाकृतियां परिचय– पवन एक महत्वपूर्ण तृतीय स्थलाकृति के निर्माण का अभिकर्ता है। वायु शुष्क एवं अर्धशुष्क क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की अपरदन एवं निक्षेप जनित स्थलाकृतियो का निर्माण करता है। उल्लेखनीय है कि 10 इंच (25 सेंटीमीटर) से कम वार्षिक वाले क्षेत्रों को मरुस्थल (शुष्क) तथा 10 से 20 इंच (25 से …

तटीय भू आकृति

सागर के तटवर्ती क्षेत्र में अनेक अपरदन हुआ निक्षेप जनित स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। इनके निर्माण में सागरीय तरंग, सागरिया धारा, ज्वारीय तरंग, सुनामी आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। फिर भी इनमें सागरीय तरंगों को भू आकृति कार्य (अपरदन निक्षेप परिवहन) सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि सागरीय तरंगे सर्वाधिक शक्तिशाली और प्रभाव कारी …

भूसन्नतियां वलित पर्वत निर्माण

भूसन्नति एवं पर्वत संरचना- प्रथम श्रेणी के उच्चावचो (महाद्वीप एवं महासागर) के भूगर्भिक इतिहास का अध्ययन करने से यह ज्ञात होता है कि शुरुआती दौर में स्थल खंडों के मध्य जलपूर्ण गर्त होते थे।दो दृढ़ स्थलखंडो के बीच स्थित इन उथले सकरे जलपूर्ण गर्तों को भूसन्नतियो के नाम पर जाना जाता है। भूसन्नतियो के भूगर्भिक …